zindagi ka safar – जिंदगी गुजर गई , बस एक ठप्पा !
zindagi ka safar – जिंदगी गुजर गई , बेग़ुनाहिका बस एक ठप्पा लगने तक ! कानून, न्याय, हक़ की बाते तो बस अंधेरो और दीवारों तक !!
आगरा: ललितपुर 20 साल बाद फ़र्जी SC/ST एक्ट व रेप केस में निर्दोष विष्णु तिवारी जेल से रिहा, परिजन त्याग चुके दुनिया।
माँ-बाप और भाई की बेइज्जती न झेल सकने के कारण हुई मौत। उनकी मां भी निर्दोष विष्णु को याद करते-करते भगवान को प्यारी हो गई लेकिन
विष्णु के परिवार में चार लोगों की मौत पर उन्हें एक बार भी अर्थी में आने के लिए बेल तक नहीं मिली। क्या कानून,न्यायपालिका उनके बर्बाद
हो चुके परिवार के वो 20 साल वापस लौटा सकती है ?
पिता रामेश्वर प्रसाद तिवारी सामाजिक रूप से तिरस्कार मिलने का सदमा झेल नहीं सके और उन्हें लकवा लग गया जिसके बाद उनकी भी मौत हो गई।
पिता की मौत के बाद विष्णु के बड़े भाई दिनेश तिवारी की भी मौत हो गई। पांच भाइयों में दिनेश के बाद रामकिशोर तिवारी की हार्ट अटैक से मौत हो गई।
जिस झूठी लालची महिला ने निर्दोष विष्णु तिवारी को फ़र्ज़ी SC/ ST Act में फंसाया था, उसे टीबी हो गई, बाद में पति ने दूसरी शादी भी कर ली, वह फरेबी
महिला घुटघुटकर मर गई, विष्णु तिवारी कितने महान हैं कि उनके मन में उस के लिए कोई दुर्भाव नहीं ।
19 साल, तीन महीने और तीन दिन। विष्णु का यह वक्त बेबसी, बदनामी और बदहाली वाला रहा। बुधवार को उसने खुली हवा में सांस ली, तो उसे रिहा होने
की खुशी थी । चेहरे पर दुष्कर्म का दाग धुलने का सुकून भी झलक रहा था। इन सबके बीच यदि उसे कुछ परेशान कर रहा था, वह थी भविष्य की चिंता।
हाईकोर्ट के आदेश पर बुधवार दोपहर परवाना मिलने पर विष्णु को केंद्रीय जेल से रिहाई मिल गई ।
बाहर आने पर उसके पास जमा पूंजी के नाम पर महज छह सौ रुपये थे। इन्हीं के सहारे वह घर ललितपुर रवाना हो गया । हाईकोर्ट ने उसकी रिहाई का
आदेश 28 जनवरी को दिया था, लेकिन कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद वह बुधवार को रिहा हो सका। खाकी पेंट के नीचे लाल जूते और सफेद टीशर्ट पहने
विष्णु तीसरे पहर करीब चार बजे सेंट्रल जेल के मुख्य दरवाजे से बाहर निकला तो ठिठक गया। कुछ पल रुककर उसने गहरी सांस ली। zindagi ka safar मानो,
वह अतीत को पीछे छोड़ बदले हालात को समझ रहा था।
उसे लेने परिवार से कोई नहीं आया था । विष्णु ने पास ही खड़े एक शख्स से मोबाइल लेकर छोटे भाई महादेव को फोन मिलाया। परिवार के हाल पूछे।
करीब पांच मिनट बात करने के बाद पास खड़े बंदी रक्षकों से हाथ मिलाकर वह चल पड़ा। उसे ललितपुर के लिए बस पकड़नी थी।
जेल के बाहर विष्णु तिवारी ने बताया कि हाईकोर्ट के आदेश की जानकारी उसे पिछले महीने ही हो गई थी। वह आदेश के ललितपुर की अदालत
पहुंचने और वहां से रिहाई का परवान आने का इंतजार कर रहा था। उसे जेल से 19 साल इतने बोझिल नहीं लगे जितना परवाना आने के इंतजार में काटा एक-एक क्षण था।
परिवार ललितपुर कोर्ट से परवाना आने के बाद केंद्रीय जेल से किया गया रिहा विष्णु ने कहा, जेल में परवाना आने के इंतजार में कटा
एक-एक लम्हा zindagi ka safar यह है मामला ललितपुर के थाना महरौनी के गांव सिलावन निवासी विष्णु तिवारी (46 वर्ष) को वर्ष 2000 में जेल भेजा गया।
दुष्कर्म और एससी-एसटी एक्ट में आजीवन कारावास की सजा पाने के बाद वर्ष 2003 में केंद्रीय कारागार आगरा में स्थानांतरित किया गया था।
परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के चलते स्वजन हाईकोर्ट में अपील नहीं कर सके। विधिक सेवा समिति ने हाईकोर्ट में उसके मामले की पैरवी की।
अंततः हाईकोर्ट ने निर्दोष करार दिया। की आर्थिक स्थित खराब होने के चलते भाई महादेव उसे लेने नहीं आ सके। विष्णु ने बताया कि वह
अब छोटे भाई की शादी करेगा। उसकी जिंदगी का लक्ष्य छोटे भाई और उसके परिवार की खुशियां हैं ।
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